Rama and Sita The Story of Diwali Pdf Short Story of Diwali Festival in Hindi pdf Short History of Diwali in Hindi pdf Shri Ram Ayodhya Aagman Ramayan pdf
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रामायण के राम और सीता की कहानी
दिवाली की श्रीराम से जुड़ी कथा (Diwali Story In Hindi)
त्रेतायुग में राक्षसों का राजा रावण था जिसकी राजधानी लंका में थी किंतु उसके राक्षस संपूर्ण पृथ्वी पर फैले हुए थे। इतना ही नहीं रावण ने अपने प्रताप से तीनो लोकों में त्राहिमाम मचा रखा था। लोगों के लिए भगवान की आराधना करना मुश्किल हो गया था। तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक पर अपना सातवाँ अवतार लिया
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जो श्रीराम के नाम से जाना गया। यह अवतार एक ऐसा अवतार था जिसने मानव जीवन के हर एक पहलु को दिखाया गया अर्थात इसमें भगवान ने जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे तथा बचपन से ही विनम्र स्वभाव, प्रजा के हितैषी व हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्तित्व के थे। उनके गुणों की ख्याति प्रजा में इस प्रकार व्याप्त हुई कि अयोध्या की प्रजा उन्हें केवल अपने आगामी राजा नहीं अपितु भगवान समझने लगी।
जब श्रीराम के राज्याभिषेक की घड़ी निकट आई तो पूरी अयोध्या उल्लास से भर उठी। जिस क्षण की प्रतीक्षा अयोध्या की प्रजा (Diwali Ki Katha In Hindi) श्रीराम के जन्म से ही कर रही थी वह क्षण बस आने ही वाला था। किंतु समय के कालचक्र ने ऐसा चक्र चला कि श्रीराम का राज्याभिषेक रुक गया व उन्हें चौदह वर्ष का कठोर वनवास मिला।
यह वनवास उनके पिता दशरथ के द्वारा उनकी सौतेली माँ कैकेई (Diwali Ki Kahani Hindi Mein) के कहने पर दिया गया था। इन चौदह वर्षो में उन्हें अपना जीवन केवल वनों में रहकर ही व्यतीत करना था। उनके साथ उनकी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण ने भी वन में जाने का निर्णय किया।
अगले दिन श्रीराम रथ में बैठकर जब वन में प्रस्थान करने लगे तो मानो अयोध्या में चीख-पुकार मच गई। अयोध्या की प्रजा उन्हें जाने देने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। श्रीराम के समझाने के पश्चात वे सभी समझ तो गए लेकिन अब वे लोग उनके साथ वन में ही रहना चाहते थे। अर्थात अयोध्या की प्रजा उन्हें जाने देने से तो नहीं रोक सकती थी लेकिन उन्होंने निर्णय लिया कि जहाँ उनके आराध्य श्रीराम रहेंगे वे सभी वही रहेंगे। कुछ इस प्रकार का स्नेह था प्रजा का श्रीराम से।
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किंतु श्रीराम थे मर्यादा व धैर्य की खान। जब उन्होंने देखा कि प्रजा अब उनकी नहीं सुनेगी व उनके साथ ही चलेगी तो उन्होंने एक योजना के तहत कार्य किया। जब सारी प्रजा रात में सो रही थी तब वे भोर होने से पूर्व ही लक्ष्मण व सीता के साथ वन में निकल गए। प्रातःकाल जब अयोध्या की प्रजा उठी तो श्रीराम को वहाँ नहीं पाकर विलाप करने लगी। उन्हें पता चल गया था कि श्रीराम अपने धर्म का पालन करने हेतु अकेले निकल पड़े हैं। यह देखकर सबकी दृष्टि में उनका सम्मान और अधिक बढ़ गया था।
इसके पश्चात श्रीराम ने अपने पिता के वचनों को पालन करते हुए चौदह वर्ष वनवासी के रूप में एक कठोर जीवन व्यतीत किया। वे प्रतिदिन भूमि पर सोते, कंद-मूल खाते व पूजा-पाठ करते। इसी के साथ वे जहाँ रह रहे थे वहाँ से उन्होंने राक्षसों का सफाया करना भी शुरू कर दिया तथा एक-एक करके पूरी भारत भूमि को राक्षसविहीन कर दिया। अब संपूर्ण भारतभूमि श्रीराम की कृपा से राक्षस मुक्त हो चुकी थी किंतु राक्षस राजा लंका में अभी भी जीवित था।
श्रीराम के वनवास के अंतिम वर्ष में रावण ने धोखे से माता सीता का अपहरण कर लिया तथा उन्हें अपनी पत्नी बनाने के उद्देश्य से लंका ले गया। भरोसेमंद और समर्पित, हनुमान ने सीता की तलाश में कई दिनों तक समुद्र और पहाड़ों की यात्रा की। अंततः उसने उसे लंका द्वीप पर रावण की जेल में पाया। हनुमान यह समाचार वापस राम के पास ले गए, जो अब पहले से भी अधिक दृढ़ निश्चई थे। सीता की रक्षा के लिए उन्होंने वानरों की एक विशाल सेना एकत्र की। उन्होंने लंका तक एक पुल भी बनवाया ताकि वे सीता को बचाने के लिए पानी के पार जा सकें।
एक-एक करके श्रीराम ने रावण के सभी योद्धाओं, भाई-पुत्रों इत्यादि का वध कर दिया (Dipawali And Shree Ram In Hindi) तथा अंतिम दिन रावण का भी वध हो गया जिसे हम दशहरा के रूप में मनाते हैं। रावण वध के पश्चात आधिकारिक तौर पर श्रीराम लंका के राजा थे तथा उन्हें यह पद मिल भी गया था लेकिन उन्होंने राज्य स्वीकार करना तो दूर नगर में भी जाना उचित नहीं समझा।
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ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें अपने पिता के वचन का पालन करते हुए चौदह वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पहले किसी भी नगर में जाना वर्जित था। इसी के साथ उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य लंका पर अधिकार करना नहीं (Shri Ram Ki Diwali) अपितु अपनी भार्या सीता को सम्मान सहित वापस लाना व आतताई राक्षस रावण व उसकी सेना का अंत करना था। तत्पश्चात उन्होंने लंका का राज्य रावण के ही छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया जो धर्मावलंबी राजा था।
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श्रीराम ने रावण की राक्षस सेना के साथ युद्ध करने के लिए केवल नीति व नियमों का ही आश्रय लिया। रावण वध की सूचना पूरे विश्व में फैल गई क्योंकि उसके आतंक से सभी भयभीत थे। जब यह सूचना अयोध्या पहुँची व उन्हें पता चला कि उनके आराध्य श्रीराम ने राक्षस राजा रावण का अंत कर धरती को पापमुक्त कर दिया है तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। इसके साथ ही अब श्रीराम के पुनः अयोध्या आने व वहाँ का राजसिंहासन सँभालने की घड़ी नजदीक आ चुकी थी।
जिस दिन श्रीराम को वापस आना था उस दिन अयोध्या की प्रजा की मानो दिल की धड़कने रुक गई थी। वह पूर्ण अमावस्या की रात थी जिस दिन वर्ष की सबसे काली रात होती है। किंतु अयोध्या की प्रजा ने अयोध्या को इस प्रकार रोशनी से नहला दिया था कि वह आसमान से भी दिखाई पड़े।
Shri Ram Ayodhya Aagman Ramayan pdf
चौदह वर्षों से अयोध्या की प्रजा की आँखें इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी कि कब उनके श्रीराम वापस आएँगे। इसी के साथ अब तो वे राक्षस राजा रावण का वध करके लौट रहे थे तो उनकी खुशी भी दुगुनी हो गई थी। इस उपलक्ष्य में उन्होंने अपने घरों, चौराहों, अयोध्या के राजमहल को दीपक की रोशनी से सजा दिया था कि वह अँधेरी रात भी जगमगा उठी थी।
यह घटना इतनी बड़ी थी कि लोग इसे आज तक याद करके श्रीराम के अयोध्या आगमन पर दीपावली का त्यौहार पूरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। आज भी कार्तिक अमावस्या की रात को पूरा देश दीपक की रोशनी से जगमगा उठता हैं व सभी लोग हर्षौल्लास से भर जाते हैं।
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